बहुत दिनों बाद मुझे मेरे ब्लॉग की याद आई.या ऐसा कहूँ की मुझे खुद की याद आई.कहाँ खुद को भूला बैठा था इतने दिनों तक पता नहीं.बहुत कूछ नींद से जागने जैसा।एक कहानी याद आ गयी,आज वोही याद आ रहा है।
एक दिन सम्राट अकबर के दरबार में एक पागल आदमी आया.मैले कुचैले कपडे थे उसके सारे शारीर पर.इधर उधर घूमता रहता था,किसीसे कूछ भी नहीं कहता था.सब लोग उसे देखके हंसने लगे।
ऐसा रोज़ ही होने लगा.पहले तो दरबार के लोगों ने उसकी अनदेखी की,फिर बहुत हंसी उड़ाई,फिर भी जब उस आदमी का बर्ताव नहीं बदला तो वो आग बबूला हो उठे और उसे गालियाँ देने लगे,और पत्त्थर मारने लगे.अकबर ने देखा तो उस आदमी से पूचा तुम कूछ बोलते क्यूँ नहीं?इसपर वो आदमी सबको दुयाएँ देने लगा.अकबर हैरान हो गया.उसने कहा ये क्या,ये सब तुम्हे कोस रहे हैं और तुम इन्हें दुयाएँ दे रहे हो!इस पर वो पागल बोल पड़ा,हुज़ुर जिसके पास जो अन्दर होगा,वो दूसरों को वोहि तो देगा।
मेरी हालत भी कूछ ऐसी ही थी.ऐसा लग रहा था,की जैसे दूसरों से बाँटने के लिए कूछ भी न बाकी हो,खुद के अंदर.अचानक आज ऐसा लगा की कूछ लिखूं.लिखना सिर्फ दूसरों से ही नहीं,खुद से भी तो मुलाकात ही है.
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